आखिर उत्तराखंड में क्यों मजबूत करना जरुरी है

देहरादून:- उत्तराखंड में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र और सेवाओं की प्रभावी डिलिवरी के लिये पंचायत और नगर निकायों को मजबूत करना अति आवश्यक है। इसी से गांव से लेकर शहरों तक का विकास का मॉडल तैयार होता है। दून विश्वविद्यालय में वित्त आयोग के सहयोग से एक कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें देशभर के प्रमुख विशेषज्ञों, अकादमी विद्वानों और राष्ट्रीय प्रशासनिक व वित्तीय संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

कार्यशाला में 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन के बाद उत्तराखंड में विकेंद्रीकरण और अधिकार हस्तांतरण की उपलब्धियाँ, चुनौतियां एवं रणनीतियों पर विचार मंथन किया गया। सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व वित्त सचिव डॉ0 अरविंद मायाराम उपस्थित हुए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र केवल बैलेट और संसद तक सीमित नहीं रह सकता, इसे हर गली और गांव तक पहुचाना होगा।

सत्र में उपस्थित कुलपति प्रो0 सुरेखा डंगवाल ने कहा कि 73 वें व 74 वें संवैधानिक संशोधन के बाद स्थानीय स्तर पर महिलाओं एवं वंचित वर्गों की भागीदारी में वृद्धि हुई है। यह कहना गलत होगा कि सभी चुनौतियां समाप्त हो गई है। वित्तीय स्वायत्तता, कार्यों का हस्तांतरण और स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण जैसी कई महत्वपूर्ण समस्याएं आज भी सामने है।

अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो0 राजेंद्र ममगाईं न कहा कि संशोधनों ने लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को एक नया आयाम दिया है। इसकी पूरी क्षमता का लाभ उठाने में हमें लंबा रास्ता तय करना है। छठे राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष एन रविशंकर ने बताया बताया कि कि स्थानीय स्थानीय शासन को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने के लिए आयोग किस तरह काम कर रहा है। सदस्य पीएस जंगपांगी ने कहा कि हमें ज्यादा फेडरल गवर्नमेंट नहीं बल्कि बेहतर लोकल गवर्नमेंट चाहिए।

राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. पिनाकी चक्रवर्ती ने कहा कि स्थानीय पंचायत एवं निकाय वर्तमान में मुख्यतः केंद्र प्रायोजित योजनाओं के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। वास्तविक विकेंद्रीकरण अभी अधूरा है। इस दौरान पंचायती राज के पूर्व सचिव एसएम विजयनंद, पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे, पंचायती राज निदेशक स्मृति निधि यादव व सेतु आयोग के निदेशक आदि मौजूद रहे।

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